Sunday, May 24, 2009

फूल नहीं धधकता अंगार हूँ

Fireफूल नहीं धधकता अंगार हूँ मैं।
थके स्वाभिमान को झकझोरती ललकार हूँ मैं।

सो‍ई भारत की वर्षों से अन्तरात्मा
नवजागरण की पुकार हूँ मैं।

ग़ुलामी बस चु्की है ख़ून में
पर क्रांति की टंकार हूँ मैं।

सर अब हमारा कभी न झुकेगा
विजयमाला का शृंगार हूँ मैं।

भस्म होगी सब दासता मानस की
सच्चे स्वाधीनता की चिंगार हूँ मैं।

बुझेगा न ये दीपक चाहे कितना ज़ोर लगा लो
हर आँधी तूफ़ान की बेबस हार हूँ मैं।

अग्निमय हूँ अग्निरूप हूँ अग्नि का उपासक हूँ
अग्नि मेरी आत्मा सत्याग्नि का ही विस्तार हूँ मैं।

अग्निवीर

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